पेस्टल पिस्ता और गोल्ड कांचीपुरम टिश्यू सिल्क साड़ी मेयिल मोटिफ्स और गाजा ज़री बॉर्डर के साथ - हाथ से बुनी हुई लक्जरी










यह अलौकिक कांचीपुरम टिशू सिल्क साड़ी, मुलायम पिस्ता हरे रंग और प्राचीन सोने के मिश्रण से एक स्वप्निल रंग में रंगी है। इसके मुख्य भाग पर चाँदी और ज़री की जटिल मयिल (मोर) आकृतियाँ हैं, जबकि इसके समृद्ध किनारे पर राजसी गज (हाथी) के डिज़ाइन और अलंकृत चौकोर आकृतियाँ हैं, जो समृद्धि, शक्ति और गरिमा का प्रतीक हैं।
शादियों, विरासत उपहार और अंतरंग समारोहों के लिए एक आदर्श विकल्प, यह साड़ी परिष्कृत शिल्प कौशल और कालातीत दक्षिण भारतीय परंपरा का प्रमाण है।
कपड़े का प्रकार: शुद्ध टिशू सिल्क
बुनाई: कोरवाई जोड़ के साथ हथकरघा कांचीपुरम
रंग: पेस्टल पिस्ता हरा और एंटीक गोल्ड
आकृतियाँ: शरीर पर मायिल (मोर) के बूटे, किनारे पर गज की आकृतियाँ
पल्लू और बॉर्डर: हाथी और पुष्प पैटर्न के साथ समृद्ध सोने की ज़री पल्लू
ब्लाउज: ज़री की सजावट के साथ मैचिंग गोल्ड टिशू ब्लाउज
अधिक जानकारी
शुद्ध ऊतक रेशम, हाथ से बुना हुआ
प्राचीन सोने और चांदी की ज़री
बिना सिला ब्लाउज पीस शामिल है
हल्का किन्तु संरचित
केवल ड्राइक्लीन
शुद्ध टिशू सिल्क में कोरवाई तकनीक का उपयोग करके बुनी गई यह साड़ी, कांचीपुरम सिल्क की संरचनात्मक सुंदरता के साथ धात्विक चमक का संगम है। इसके किनारे पर पारंपरिक गज आकृतियाँ दिखाई देती हैं, जबकि शरीर पर मोर इसकी कलात्मक प्रतीकात्मकता को और भी निखारते हैं—प्रत्येक आकृति ज़री और चांदी के धागों से सावधानीपूर्वक हाथ से बुनी गई है।
तमिलनाडु के मंदिरों के शहर कांचीपुरम से, जहाँ हथकरघा परंपरा सदियों पुरानी है। यहाँ के कुशल बुनकर असली ज़री और रेशम का इस्तेमाल करके मंदिर के करघों के ज़रिए दिव्य और प्रकृति-प्रेरित रूपांकनों को जीवंत करते हैं।
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